एन संतोष हेगडे (जन्म : १६ जून, १९४०) भारत के उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायधीश एवं महान्यायवादी रहे हैं। वर्तमान में वे कर्नाटक के लोकायुक्त हैं तथा हाल में ही गठित जन-लोकपाल विधेयक निर्मात्री समिति के सदस्य भी हैं। हाल में ही उन्होंने कर्नाटक में अवैध खनन मामले पर जो रिपोर्ट बनाई उसमें उन्होंने मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को ज़िम्मेदार ठहराया.
इसके बाद येदियुरप्पा को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था.
अन्ना हजारे ने 6 अगस्त को इंडियाअगेन्स्ट करप्शन की साइट पर लिखे अपने ब्लाग में एक ऐसी घोषणा कर दी जो चर्चा का विषय बन गई. टीम अन्ना द्वारा जंतर मंतर पर अनशन की समाप्ति के साथ ही अन्ना हजारे ने टीम अन्ना के समाप्ति की घोषणा कर दी है. इस चौंकानेवाले घोषणा के पीछे आखिर क्या तर्क और खोजबीन की गई तो एक बार फिर वही अरविन्द केजरीवाल सामने आये. टीम अन्ना की समाप्ति की घोषणा असल में संतोष हेगड़े जैसे सदस्यों से छुटकारा पाने का उपाय है. न टीम अन्ना रहेगी और न हेगड़े का सिरदर्द. इसलिए उस टीम अन्ना को ही भंग कर दिया गया जिसमें ऐसे लोग भर गये थे जो अन्ना के आंदोलन को बयानबाजी करके कमजोर करते रहते थे.
जंतर मंतर पर जैसे ही टीम अन्ना के इशारे पर अन्ना हजारे ने राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की संतोष हेगड़े का बयान आ गया कि यह आंदोलन को खत्म करने की साजिश है. हालांकि खुद संतोष हेगड़े का इस आंदोलन से दूर से ही नाता था लेकिन क्योंकि वे खुद कर्नाटक में लोकायुक्त रह चुके हैं और लोकपाल के िलए बने प्रस्ताव का शुरूआती ड्राफ्ट तैयार करने में भी उनकी भूमिका थी इसलिए वे टीम अन्ना के अहम मेम्बर थे. उनके बयान को टीम अन्ना का अधिकृत बयान माना जाता था लेकिन संतोष हेगड़े को यह बात पसंद नहीं आई कि टीम अन्ना अब लोकपाल के आंदोलन को खत्म करके लोकतंत्र के लिए आंदोलन शुरू करे. हालांकि अन्ना की इस घोषणा के बाद संतोष हेगड़े ने कहा कि टीम अन्ना कायम रहेगी और लोकपाल के आंदोलन जारी रखेगी, लेकिन वह टीम अन्ना कौन सी होगी, और उसमें कौन कौन लोग बच जाएंगे यह संतोष हेगड़े को नहीं पता.
इसल में टीम अन्ना में अराजकता लंबे समय से घर कर गई थी. नवंबर 2010 में जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान की शुरूआत की गई थी तब अरविन्द केजरीवाल ने अगर एक तरफ अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर को इस आंदोलन में साथ देने के लिए राजी किया था तो वहीं दूसरी ओर ढेर सारे गैर सरकारी संगठनों के प्रमुखों और प्रतिनिधियों को इस आंदोलन में शामिल किया था. फरवरी 2011 में रामलीला मैदान की रैली में ज्यादातर एनजीओवादी लोग ही इकट्ठा हुए थे. यहां तक तो सब ठीक था लेकिन जैसे ही अप्रैल में अन्ना के अनशऩ को मीडिया का समर्थन मिला, टीम अन्ना के एनजीओवादी लोगों को लगा कि उनके तो भाग ही जाग गये हैं. देखते ही देखते ढेर सारे लोग टीम अन्ना के नाम पर सक्रिय हो गये. कुछ तो सरकार के साथ भी जा मिले और कुछ ने आंदोलन को अंदर से कमजोर करने तथा अरविन्द केजरीवाल को कमजोर करने के भी उपाय किये. लेकिन खुद अन्ना हजारे अगर टीम अन्ना में किसी की सुनते हैं तो अरविन्द केजरीवाल की, इसलिए लोगों के लाख चाहने के बाद अन्ना अरविन्द का साथ बना रहा.
अब जबकि अरविन्द केजरीवाल की कोशिशों से अन्ना हजारे राजनीतिक दल को समर्थन देने के िलए तैयार हो गये हैं तो एक नयी कोर कमेटी बनाने का निर्णय लिया गया है. जाहिर है, अब मामला राजनीतिक हो चला है इसलिए चुन चुनकर लोगों को इसमें शामिल किया जाएगा. ऐसे में स्वामी अग्निवेश, संतोष हेगड़े जैसे जो लोग बाधा बन रहे थे उनसे किनारा करके राजनीतिक मुहिम जारी रखी जाएगी.
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