भ्रष्टाचार पर सुप्रीम कोर्ट का प्रहार

भ्रष्टाचार पर सुप्रीम कोर्ट का प्रहार

भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने में सरकार की हीलाहवाली पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार चार महीने के भीतर फैसला ले ले। टूजी मामले में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने में विफल रहने पर सुप्रीम कोर्ट ने पीएमओ को तो लपेटा लेकिन प्रधानमंत्री का बचाव किया।

हर नागरिक को कोर्ट जाने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने टूजी मामले में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि हर भारतीय नागरिक को भ्रष्ट लोकसेवकों के खिलाफ जांच के लिए न्यायालय जाने का अधिकार है। स्वामी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने के लिए प्रधानमंत्री को निर्देश देने की गुहार लगाई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया था। जस्टिस जीएस सिंघवी और एके गांगुली की खंडपीठ ने कहा कि स्वामी को मुकदमा चलाने की मांग करने का अधिकार है।

नहीं लटकता एक साल तक मामला
कोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने स्वामी की उस याचिका को दबा दिया जिसमें राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए प्रधानमंत्री से मंजूरी की गुहार लगाई गई थी। कोर्ट ने कहा, हमें इस बात में कोई शक नहीं है कि अगर पीएम को उस याचिका के बारे में सही तौर पर तथ्यात्मक और कानूनी स्थिति के बारे में जानकारी दी गई होती तो वह अवश्य ही उचित फैसला लेते। और यह मामला एक साल से ज्यादा समय के लिए नहीं लटकता।

तीन माह के अंदर मिल अनुमति
जस्टिस गांगुली ने अपने अलग से दिए निर्णय में जस्टिस सिंघवी के फैसले से सहमति जताते हुए कहा कि सक्षम अधिकारी यदि चार माह के भीतर निर्णय लेने में विफल रहते हैं तो यह माना जाएगा कि मुकदमा चलाने की स्वीकृति स्वत ही मिल गई है। खंडपीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में मुकदमा चलाने की अनुमति तीन माह के भीतर दे दी जानी चाहिए और यदि इस संबंध में अटार्नी जनरल से सलाह लेनी है तो इसके लिए एक माह का समय और लिया जा सकता है।

संसद करे विचार
जस्टिस गांगुली ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधी कानून में मुकदमा चलाने से संबंधित इजाजत देने के मामले में समय सीमा का कोई जिक्र नहीं है। ऐसे में संसद कानून की धारा 19 में ‘समयसीमा’ को जोड़ने पर विचार कर सकती है जिससे कि यह कानून ठीक ढंग से प्रभावी हो।

क्या था मामला
जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने के लिए प्रधानमंत्री को निर्देश देने की गुहार लगाई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
याचिकाकर्ता को मुकदमा चलाने की मांग करने का अधिकार है। सक्षम अधिकारी यदि चार माह के भीतर निर्णय लेने में विफल रहते हैं तो यह माना जाएगा कि मुकदमा चलाने की स्वीकृति स्वत ही मिल गई है।

पीएम का किया बचाव
कोर्ट ने कहा, हमें इस बात में कोई शक नहीं है कि अगर पीएम को उस याचिका के बारे में सही तौर पर तथ्यात्मक और कानूनी स्थिति के बारे में जानकारी दी गई होती तो वह अवश्य ही उचित फैसला लेते।


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