मॉस्को/नई दिल्ली| रूस की साइबेरिया स्थित अदालत द्वारा हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ भगवद् गीता को 'चरमपंथी साहित्य' बताने एवं इसे प्रतिबंधित करने की याचिका खारिज करने के बाद सरकारी अभियोजक ऊपरी अदालत में अपील करने की योजना बना रहे हैं। सरकारी अभियोजकों ने रूसी भाषा में अनूदित भगवद् गीता पर 'सामाजिक वैमनस्य' फैलाने का आरोप लगाते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए साइबेरिया की तामस्क शहर की अदालत में याचिका दायर की थी।
ऊपरी अदालत में अपील करने की अंतिम तिथि बुधवार को समाप्त हो गई।इस्कॉन की रूसी इकाई की सदस्य साधु प्रिया दास ने मॉस्को से फोन पर गुरुवार को आईएएनएस को बताया, "अभियोजक ऊपरी अदालत में अपील करने की योजना बना रहे हैं। उन्हें अपील दायर करने के लिए और समय की मांग की है।" समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्ती ने तामस्क अदालत की प्रवक्ता के हवाले से बताया कि सरकारी अभियोजकों ने इस्कॉन के संस्थापक ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा रूसी भाषा में अनूदित भगवद् गीता को चरमपंथी साहित्य बताते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने की याचिका दायर की थी। रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अलेक्जेंडर लुकाशेविश के हवाले से बताया गया कि जरूरी नहीं है कि अनूदित संस्करण भाषा की दृष्टि से मूल कृति की तरह सही हो। प्रवक्ता ने बताया कि अनूदित संस्करण में 'अर्थ विकृतियां' हैं जिससे आशय प्रभावित हुआ है।
सरकारी अभियोजकों ने तामस्क की जिला अदालत में यह मामला जून 2011 में दायर किया था और अदालत ने इसे 28 दिसम्बर को खारिज कर दिया था। यह मामला उजागर होने के बाद भारत में जबरदस्त हंगामा हुआ। लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों द्वारा मामला उठाए जाने पर विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने संसद में बयान दिया। उन्होंने अपने बयान में कहा कि रूस में हिंदुओं के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारत सरकार हर सम्भव प्रयास कर रही है। रूस के हिंदू समुदाय और भगवान कृष्ण के अनुयायी जो करीब 50 हजार हैं, उन्होंने भारत सरकार और मास्को स्थित भारतीय दूतावास से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी। इसके अलावा हिंदुओं ने प्रधानमंत्री कार्यालय को भी पत्र लिखा था। कृष्णा ने मामले की गम्भीरता को देखते हुए रूसी राजदूत अलेक्जेंडर कदाकिन से भी मुलाकात की थी।
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