आगामी बजट से आम आदमी को बहुत राहत की उम्मीद करना बेमानी होगा। बढ़ते राजकोषीय घाटे का बोझ और कर उगाही उम्मीद से कम होने के कारण वित्त मंत्रालय पर सरकारी बजट संतुलित करने का दबाव बना हुआ है। इस वजह से मंत्रालय बजट में रियायतों का पिटारा खोलने में कंजूसी कर सकता है।
विनिवेश लक्ष्य भी सरकार के अनुमान से काफी पीछे
सरकारी खजाने में लगातार चपत लगने से परेशान सरकार के एजेंडे में फिलहाल आम आदमी को राहत देने के उपायों पर ध्यान देने की बजाए विकास दर बढ़ाने और विदेशी निवेशकों को भारत का रास्ता दिखाना है। दरअसल, एक ओर उम्मीद से कम प्रत्यक्ष कर जमा हो पाया है, तो दूसरी ओर विनिवेश लक्ष्य भी सरकार के अनुमान से काफी पीछे है। विनिवेश सचिव ने भी यह साफ कर दिया है 40 हजार करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य को पाना मौजूदा आर्थिक परिप्रेक्ष्य में संभव नहीं है।
एक ओर ग्लोबल अर्थव्यवस्था डगमगाई हुई
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के वरिष्ठ अर्थशास्त्रत्त्ी एसके मंडल का कहना है कि विनिवेश लक्ष्य पूरा नहीं होने से सरकार का राजकोषीय घाटा साढ़े छह फीसदी से ज्यादा भी हो सकता है। इसका असर आगामी बजट पर होगा। एक ओर ग्लोबल अर्थव्यवस्था डगमगाई हुई है। घरेलू बाजार पर इसका असर साफ असर नजर आ रहा है। इसलिए आगामी बजट लोक लुभावन होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। हालांकि महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी की उम्मीदें भी बढ़ी हुई हैं। मंडल का कहना है कि पिछले वर्ष बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जिन उम्मीदों का ब्योरा दिया था, वह अनुमान से कहीं कम है। देश की घरेलू विकास दर घटने के साथ उद्योगों की खस्ताहाल स्थिति का खामियाजा भी आम आदमी को उठाना पड़ रहा है।
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