वे उसे पूर्ण करने में पूरी तरह जुट गए दिखते हैं। श्री सिब्बल देश के जाने-माने वकील हैं, इस नाते वाकपटुता और वाकचातुर्य भी हैं। तथ्यों को अपने पक्ष में किस तरह करना है, यह हर सिध्दहस्त वकील भली-भांति जानता है, श्री सिब्बल भी इसके अपवाद नहींहैं। उन्होंने टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले के चक्रव्यूह में घिरी सरकार को निकालने के द्वार बनाने शुरु कर दिए हैं। पहले उन्होंने अपने पूर्ववर्ती ए.राजा को निर्दोष बताया और अब वे लेखा-जोखा करने वाली संस्था कैग की विश्वसनीयता पर उंगली उठाने लग गए हैं। कैग द्वारा दी गयी रिपोर्ट के आधार पर ही देश को पता चला था कि टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले के आबंटन में देश को 1.76 लाख करोड़ का नुकसान हुआ था। श्री सिब्बल ने कैग की रिपोर्ट बनाने के तरीके को ही गलत ठहराया और इसलिए वे इस आकलन को भी गलत मान रहे हैं। उनके मुताबिक देश को इतना नुकसान हुआ ही नहीं। दो दिन पहले तक कांग्रेस इस मामले पर शांत थी, लेकिन अब वह सिब्बल के पक्ष में खड़ी हो गयी है। अगर श्री सिब्बल और कांग्रेस की बात मानें तो यह साबित होगा कि सूत न कपास, जुलाहों में लठ्ठम-लठ्ठा। देश में इतना कोहराम फिजूल में मचा, विपक्ष ने इतना हंगामा व्यर्थ किया, शीतकालीन सत्र बिना बात विरोध मेंव्यतीत कर दिया गया, ए.राजा का इस्तीफा भी अकारण ही हो गया। अगर इतनी कवायद बिना किसी कारण के करनी थी, तो ऐसा करने की जरूरत ही क्या थी?
देश को अगर कोई नुकसान नहींहुआ, लाइसेंस के आबंटन में कोई घोटाला नहींहुआ, ए.राजा और उनके साथियों ने कोई भ्रष्टाचार नहींकिया तो फिर कांग्रेस ने, यूपीए सरकार ने बात उठते ही इसका खुलासा क्यों न कर दिया? कपिल सिब्बल तब इस मंत्रालय को नहींदेख रहे थे, लेकिन कांग्रेस के पास वकीलों की कोई कमी नहींहै। तब ही कैग की रिपोर्ट का विश्लेषण कर लेना चाहिए था, ताकि इतना बवाल न खड़ा हो। श्री सिब्बल के मुताबिक अगर सारा दृश्य पाक-साफ था तो विपक्ष की मांग पर जेपीसी गठित कर संसद सत्र को चलने दिया जाता। दिक्कत यह है कि समीकरण सीधे-सीधे दो और दो चार का नहींहै, दो और दो को बाइस बनाने का जो खेल खेला गया है, यह सारा तमाशा इसी वजह से खड़ा हुआ है। कपिल सिब्बल ने कांग्रेस के वरिष्ठ और सच्चे सिपाही की भूमिका निभाते हुए इस संकट को दूर करने की रणनीति बनाई, जिसमें कांग्रेस उनके साथ है। लेकिन कांग्रेस ऐसा करके देश को पुन: गुमराह करने की कोशिश कर रही है। तमिलनाडु में शीघ्र ही चुनाव होने वाले हैं, इसलिए डीएमके को संकट से बचाना उसके लिए जरूरी होगा। किंतु जनता की याददाश्त इतनी कमजोर नहींहोती। अगर टूजी स्पेक्ट्रम के आबंटन में कोई गड़बड़ी नहींथी, तो प्रधानमंत्री कार्यालय से ए.राजा को प्रक्रिया में पारदर्शिता बरतने का पत्र क्यों गया? ए.राजा ने प्रधानमंत्री को इस मामले में लंबे समय तक अंधेरे में क्यों रखा? कपिल सिब्बल ने कैग के आकलन के आधार को गलत बताया, लेकिन वे इसके अन्य पहलुओं पर गौर नहींफरमा रहे हैं। मसलन, जब केंद्र लाइसेंस के मूल्य निर्धारण के लिए 1990 से ही बाजार में प्रचलित तकनीक का इस्तेमाल करते आया है, तो 2008 में इसे क्यों रोक दिया गया, जबकि तब तक देश में मोबाइलधारकों की संख्या 26 करोड़ हो गयी थी और 1990 के 3 प्रतिशत से बढ़कर इसका घनत्व 26 प्रतिशत तक बढ़ गया था। कुछ कंपनियों जैसे कि एस.टेल लिमिटेड ने स्वयं पत्र लिखकर राजस्व से पहले 6 हजार और बाद में 13 हजार 752 करोड़ रूपए देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन इस पर ध्यान नहींदिया गया। अकेले इससे देश को 65 हजार 909 करोड़ मिल सकते थे, जबकि अभी मात्र12,386 करोड़ मिले हैं। कैग की रिपोर्ट में इसे आधार बनाकर लिखा गया है कि यह साबित करता है कि अगर नीलामी की प्रक्रिया खुली रखी जाती और समयसीमा हड़बड़ी में, अंतिम समय में बदलाव कर नहींकी जाती तो इतना नुकसान नहींहोता। इसी तरह नयी कंपनियों में विदेशी निवेश बताता है कि भारत के टेलीकाम के बाजार में उन्हें कमाई की अपार संभावनाएं दिख रही हैं। इसे ध्यान में रखते हुए पूरे भारत के लिए लाइसेंस देने की कीमत 7.758 से लेकर 9,100 करोड़ तक रखी जा सकती थी, जबकि दूरसंरचार विभाग से इसके लिए महज 1,658 करोड़ वसूले गए। देश को 58 हजार से लेकर 68 हजार करोड़ तक का राजस्व इससे अर्जित हो सकता था। किंतु यहां भी नुकसान हुआ। ध्यान रहे कि कैग ने इस तरह के तमाम आकलन सीधे-सीधे गणितीय या अर्थशास्त्र की तकनीक मात्र से नहींकिए, बल्कि लाइसेंस आबंटन की प्रक्रिया से जुड़े हुए सारे तथ्यों, रिकार्ड को देख-परख कर नुकसान का अनुमान लगाया है। कपिल सिब्बल इसे ही गलत ठहराने पर आमादा हैं।
एक संवैधानिक संस्था की साख बनाए रखना भी सरकार की जिम्मेदारी है। यहां सरकार उस पर ही सवाल उठाकर न सिर्फ संस्था को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि खुद भी संदेह के घेरे में आ रही है। अगर श्री सिब्बल की बात ही सही है कि देश को इतना नुकसान नहींहुआ, तो इससे खुशी की बात क्या है। पर अगर एक रूपए की गड़बड़ी भी हुई है, तो उसकी जवाबदेही तय करना सरकार की जिम्मेदारी है, वह इससे बच नहींसकती।
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