छत्तीसगढ़ की राजधानी जयपुर की एक स्थानीय अदालत ने मानवाधिकार कार्यकर्ता और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. विनायक सेन को नक्सलियों के साथ साठगांठ और उनकी सहायता के आरोप में देशद्रोह का अपराधी ठहराकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। भूख से मौत और कुपोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाले डॉ. सेन को छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा कानून केतहत 14 मई, 2007 को गिरफ्तार किया गया था। 25 मई, 2009 को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद डॉ. विनायक सेन रिहा हो गए थे।
छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा कानून राज्य में बढ़ती नक्सली गतिविधियों को रोकने तथा हिंसा व आतंक फैला रहे ऐसे लोगों को सहयोग करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के उद्देश्य से बनाया गया था। इस कानून को मार्च, 2005 से लागू किया गया। इस कानून के तहत राज्य में गैरकानूनी संगठनों की मदद करने वाले असामाजिक तत्व और गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल रहने वाले लोगों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई और दंड का प्रावधान किया गया है।
इस कानून के लागू होते ही मानवाधिकार संगठनों ने इसे खत्म करने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका भी दायर की थी। इन संगठनों का मानना है कि इस कानून में गैरकानूनी गतिविधियां और गैरकानूनी संगठन की परिभाषा व्यापक और अस्पष्ट है। लिहाजा इसकी जद मेंहर तरह का लोकतांत्रिक विरोध आ जाता है। लोकतांत्रिक संगठन भी इससे नहीं बच सकते। इस तरह यह कानून नागरिकों के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक तथा लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य एवं मानवाधिकार क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित डॉ. विनायक सेन भी इस कानून के खिलाफ थे। उनका कहना था कि इसका दुरुपयोग सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं पत्रकारों के खिलाफ किया जा सकता है
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