पर्यटन भूगोल
पर्यटन भूगोल या भू-पर्यटन, भूगोल की एक प्रमुख शाखा हैं। इस शाखा में पर्यटन एवं यात्राओं से सम्बन्धित तत्वों का अध्ययन, भौगोलिक पहलुओं को ध्यान मे रखकर किया जाता है। नेशनल जियोग्रेफ़िक की एक परिभाषा के अनुसार किसी स्थान और उसके निवासियों की संस्कृति, सुरुचि, परंपरा, जलवायु, पर्यावरण और विकास के स्वरूप का विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने और उसके विकास में सहयोग करने वाले पर्यटन को "पर्यटन भूगोल" कहा जाता है। भू पर्यटन के अनेक लाभ हैं। किसी स्थल का साक्षात्कार होने के कारण तथा उससे संबंधित जानकारी अनुभव द्वारा प्राप्त होने के कारण पर्यटक और निवासी दोनों का अनेक प्रकार से विकास होता हैं। पर्यटन स्थल पर अनेक प्रकार के सामाजिक तथा व्यापारिक समूह मिलकर काम करते हैं जिससे पर्यटक और निवासी दोनों के अनुभव अधिक प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण बन जाते है। भू पर्यटन परस्पर एक दूसरे को सूचना, ज्ञान, संस्कार और परंपराओं के आदान-प्रदान में सहायक होता है, इससे दोनों को ही व्यापार और आर्थिक विकास के अवसर मिलते हैं, स्थानीय वस्तुओं कलाओं और उत्पाद को नए बाज़ार मिलते हैं और मानवता के विकास की दिशाएँ खुलती हैं साथ ही बच्चों और परिजनों के लिए सच्ची कहानियाँ, चित्र और फिल्में भी मिलती हैं जो पर्यटक अपनी यात्रा के दौरान बनाते हैं।पर्यटन भूगोल के विकास या क्षय में पर्यटन स्थल के राजनैतिक, सामाजिक और प्राकृतिक कारणों का बहुत महत्त्व होता है और इसके विषय में जानकारी के मानचित्र आदि कुछ उपकरणों की आवश्यकता होती है
पर्यटन का भौगोलिक प्रारम्भ
कोलम्बस की यात्राओं सें संबंधित यह मानचित्र १४९० में बनाया गया भूगोल और पर्यटन का सम्बंध बहुत पुराना है, लेकिन पर्यटन का भौगोलिक प्रारम्भ धीरे-धीरे हुआ। प्राचीन काल से ही लोग एक स्थान से दूसरे स्थान को गमनागमन करते थे। अनेक प्रजातियों जैसेमंगोलायड प्रजाति, नीग्रोइड्स इत्यादि ने अन्तरमहाद्वीपीय स्थानान्तरण किया, किन्तु ये पलायन केवल जीवन के स्तर पर आधारित था और यह मानव बसाव की स्थायी प्रक्रिया थी अतएव इसका कोई पर्यटन महत्व नहीं माना जा सकता। जब खोज का युग आया तो पुर्तगाल और चीन जैसे देशों के यात्रियों ने आर्थिक कारणों, धार्मिक कारणों एवं दूसरी संस्कृतियों को जानने और समझने की जिज्ञासा के साथ अनेक अज्ञात स्थानों की खोज करने की शुरुआत की। इस समय परिवहन का साधन केवल समुद्री मार्ग एवं पैदल यात्रा थे। यहीं से पर्यटन को एक अलग रूप एवं महत्त्व मिलना प्रारम्भ हुआ। भूगोल ने पर्यटन को विकास का रास्ता दिखाया और इसी रास्ते पर चलकर पर्यटन ने भूगोल के लिए आवश्यक तथ्य एकत्रित किए। आमेरिगो वेस्पूची, फ़र्दिनान्द मैगलन, क्रिस्टोफ़र कोलम्बस, वास्को दा गामा और फ्रांसिस ड्रेक जैसे हिम्मती यात्रियों ने भूगोल का आधार लेकर समुद्री रास्तों से अनजान स्थानों की खोज प्रारम्भ की और यही से भूगोल ने पर्यटन को एक प्राथमिक रूप प्रदान किया। अनेक संस्कृतियों, धर्मों और मान्यताओं का विकास पर्यटन भूगोल के द्वारा ही संभव हुआ। विश्व के विकास और निर्माण में पर्यटन भूगोल का अत्यधिक महत्त्व है। इसकी परिभाषा करते हुए कहा भी गया है कि खोज का जादुई आकर्षण ही पर्यटन भूगोल का आधार है और स्वयं संपर्क में आकर प्राप्त किया गया प्रामाणिक अनुभव इसकी शक्ति है।[३] आजकल भू पर्यटन का परिधि भू पार कर अंतरिक्ष की ओर बढ़ चली है।[४]
प्राचीन एवं मध्य काल में कई प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं ने अनेक स्थानों की यात्राएँ की। कुछ प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं द्वारा दिए पर्यटन सम्बन्धी विचार निम्नलिखित हैं। यूनानी विचारधारा प्राचीन यूनानी विद्वानों ने भूगोल का बहुत विकास किया। यह वह काल था जब संसार केवल एशिया, यूरोप और अफ़्रीका तक ही सीमित माना जाता था। अनेग्जीमेण्डर, ने अनेक स्थानों की यात्राएँ कीं। उसे संसार का सर्वप्रथम मानचित्र निर्माता बताया गया है।[५] इरैटोस्थनिज़ ने पृथ्वी की परिधि नापने के लिए मिस्र के आस्वान क्षेत्र में साइने नामक स्थान को अपना प्रयोगस्थल बनाया,जो आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इसी प्रकार पोसिडोनियस ने भी अपने शास्त्रों में भौतिक भूगोल पर बल दिया, दूसरी तरफ उसने गेलेशिया के लोगों का भी वर्णन किया। क्लाडियस टॉलमी ने अनेक ग्रंथों एवं मानचित्रों की रचना की। एक बड़ी रोचक घटना टॉलमी के बनाए मानचित्रों से जुड़ी है, पोसिडोनियस के माप को लेकर टॉलमी ने अपने मानचित्र बनाऐ थे, लेकिन उसमें यह दोष रहा कि उसमें पृथ्वी का आकार छोटा था। टॉलमी के मानचित्रों के इस दोष का प्रभाव कोलम्बस की यात्राओं पर पड़ा, क्योंकि उसने इन मानचित्रों का अनुसरण करते हुए अमेरिका को एशिया समझा। रोमन विचारधारा स्ट्रैबो, पोम्पोनियस मेला और प्लिनी ने अनेक क्षेत्रों की यात्राएं कीं। स्ट्रैबो ने लिखा कि "भूगोल के द्वारा समस्त संसार के निवासियों से परिचय होता है। भूगोलवेत्ता एक ऐसा दार्शनिक होता है, जो मानवीय जीवन को सुखी बनाने और खोजो में संलग्न रहता है।"[६]पोम्पोनियस मेला के ग्रन्थ कॉस्मोग्राफ़ी में विश्व का संक्षिप्त वर्णन मिलता है। अरब विचारधारा प्रमुख अरब विद्वान अल-इदरीसी ने केवल पर्यटन के उद्देश्य से ही एक ग्रंथ लिखा-उसके लिए जो मनोरंजन के लिए विश्व भ्रमण की इच्छा रखता है। इसके साथ उसने एक मानचित्रावली भी प्रकाशित की। अल-बरुनी, अल-मसूदी, इब्न-बतूता आदि अरब भूगोलवेत्ताओं ने भी अनेक यात्राएँ कर क्षेत्रीय भूगोल के अन्तर्गत पर्यटन को बढावा दिया। भारतीय विचारधारा भारतीय परंपरा में परिव्राजक का स्थान प्राचीन काल से ही है। संन्यासी को किसी स्थान विशेष से मोह न हो, इसलिए परिव्राजक के रूप में पर्यटन करते रहना होता है। ज्ञान के विस्तार के लिए अनेक यात्राएँ की जाती थीं। आदि शंकर और स्वामी विवेकानन्द की प्रसिद्ध भारत यात्राएँ इसी उद्देश्य से हुईं। बौद्ध धर्म के आगमन पर गौतम बुद्ध के संदेश को अन्य देशों में पहुँचाने के लिए अनेक भिक्षुओं ने लम्बी यात्राएँ कीं। अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को इसी उद्देश्य से श्रीलंका भेजा। सामान्यजन के लिए ज्ञान के विस्तार और सामूहिक विकास के लिए तीर्थ यात्राओं की व्यवस्था भी प्राचीन भूपर्यटन का ही एक रूप था।
पर्यावरण के अन्तर्गत जैविक तत्व पर्यटन पर प्रभाव डालते है। स्थानीय जैव संपदा आधारित विभिन्न्ता तथापारिस्थितिक तंत्र पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इसके अन्तर्गत स्थानीय पेड़-पौधे एवं पशु-पक्षी महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ऑस्ट्रेलिया मे पाया जाने वाला जन्तु कंगारू यहाँ एक प्रमुख स्थान रखता है। विश्व में कंगारू ही ऑस्ट्रेलिया की पहचान है। यहँ तक कि ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय चिह्न मे इसे चित्रित किया जाता है। विश्व में अनेक देश अपने यहाँ के जंगली जानवरों के आवास को प्राथमिकता देते हैं। भारत के अनेक वन्य जीव संरक्षण परियोजनाएँ इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त भारत में अनेक राष्ट्रीय उद्यान हैं जो विश्व के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। स्थानीय स्थलाकृति का गहराई के आधार पर भौतिक भूगोल में अध्ययन किया जाता है। पर्यटन भूगोल में इसका अध्ययन केवल उन क्षेत्रों तक सीमित होता है जो अपनी विशेष स्थलाकृति के कारण अनूठे होते हैं। ये विशेषताएं निर्जन और आबादी रहित पहाड़ी प्रदेशों में भी हो सकती हैं और स्वास्थ्यवर्धक जलवायु वाले पहाड़ी प्रदेशों में भी, उदाहरण के लिए भारत में शिमला और माउंट आबू। दूसरी तरफ नदी-घाटियाँ, सागर, झरने, सूखे मरूस्थल, और भौगोलिक कारकों जैसे पानी, पवन, हिम आदि द्वारा उत्पन्न अपरदित एवं बनाई गई स्थलाकृतियाँ भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के अनेक पर्यटन क्षेत्र इसका उदाहरण हैं। ज्वालामुखी भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र समझे जाते हैं।[७] लेकिन प्रकृति के इन्हीं आकर्षणों के भयंकर रूप धारण करने पर पर्यटन को हानि भी पहुँचती है। वर्तमान समय में जब भू पर्यटन एक व्यवसाय का रूप ले चुका है अनेक देश अपने आकर्षक भौगोलिक दृश्यों वाले स्थलों के चित्रात्मक
भौगोलिक विचारधाराओं मे पर्यटन
भौगोलिक तत्वों का पर्यटन में महत्त्व
पर्यावरणीय महत्त्व
भौगोलिक दृश्यों का आकर्षण